मंगलवार, 1 नवंबर 2011

इबादत

अब ना मुझे मंदिरों से प्यार रहा ,ना मस्जिदों पर एतबार रहा | मेरे घर के पड़ोस का वो मौलवी ,और पुजारी भी ना-पाक रहा और धर्म का ठेकेदार रहा| मैं अजान पर गया था जुम्मे के दिन ,सोचा खुदा मिलेगा मिला नहीं वो मंदिरों में भी,खुदा तेरा अब इन्तजार रहा | कैसे मिलेगा तू मुझसे,जब इंसान ही तुझको मार रहा| अब सोचता हू कमबख्त बदनाम 'इश्क ' ही करलू , सुना है आशिको की मजारो पर भी तेरा ही दरबार रहा | ---ललित शर्मा