सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

पिया रंगीला


             ::पिया रंगीला::
क्या दर्द है , क्या आरज़ू मेरी .....
क्यों मैं तेरे इश्क में यूँ रहा गीला .....
पसीने मेरे छूट गए ,देखा जब मैंने पिया रंगीला..|
ताउम्र तुझे भुलाता रहा , अक्स तेरा याद आता रहा...
दर्पण मेरा टूट गया , यूँ साथ तेरा छूट गया...
फिर आड़े मेरे आ गया ...ये मिज़ाज़ तेरा दर्पीला ....
फिर ज़ख्म मेरे गहरा गए , देखा जब मैंने पिया रंगीला..|
समन तुझे भेज रहा हूँ , ये इश्क मेरा आदेश समझ..
आज मैं हैसियत का बादशाह हूँ , न मुझे दरवेश समझ ...
सोच - समझकर  कर तू फैसला मेरा , न इसे तू आवेश समझ..
पर अब भी याद है मुझे वो ज़हर का रंग नीला..
जी मेरा भी मचल गया , देखा जब मैंने पिया रंगीला..|
..........................................ललित शर्मा "बागी"

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नूतन वर्ष

लहरों को ठेंगा दिखलाकर , कश्ती को बीच समन्दर में ला|
खुद पर रख काबू , मन के सभी अविश्वास जला |
खुद से किये वादे तू बड़ी शिद्दत से निभा |
आज तू फिर जाग जा ,फिर से नूतन वर्ष मना||

प्रतिद्वंदी दूंढ़ तू खुद से बडा और उससे तू 'race' लगा |
टालमटोल को टाल दे, कशमकश को आग लगा|
मेहनत कर लक्ष्य को पाने में , माथे से पसीना ज़रा टपका|
आज तू फिर जाग जा ,फिर से नूतन वर्ष मना||
............................................ललित शर्मा

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

इबादत

अब ना मुझे मंदिरों से प्यार रहा ,ना मस्जिदों पर एतबार रहा | मेरे घर के पड़ोस का वो मौलवी ,और पुजारी भी ना-पाक रहा और धर्म का ठेकेदार रहा| मैं अजान पर गया था जुम्मे के दिन ,सोचा खुदा मिलेगा मिला नहीं वो मंदिरों में भी,खुदा तेरा अब इन्तजार रहा | कैसे मिलेगा तू मुझसे,जब इंसान ही तुझको मार रहा| अब सोचता हू कमबख्त बदनाम 'इश्क ' ही करलू , सुना है आशिको की मजारो पर भी तेरा ही दरबार रहा | ---ललित शर्मा

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

हाल-ए-दिल

अब मैं दिल-ए-जुस्तजू करूँ तो करूँ कैसे ,अभी जल रही है शमा  तेरे इश्क की मेरे दिल में|
रहने दे ऐ यार मुझे अब रुखसत करदे,बेमानी है ज़िन्दगी मेरी अब इस घर में|
यूँ तो बियावान है दिल मेरा,पर कोई पल्लव खिल रहा है  तेरी मोहब्बत  का मेरे आँगन में|
नज़्म भी अधूरी रहती है मेरी ,अब तेरे जिक्र के बिना,आ दफना दे मेरे जज़्बात मेरे दिल में|
अब मैं दिल-ए-जुस्तजू करूँ तो करूँ कैसे.....
                                                                 -ललित शर्मा 

शनिवार, 30 जुलाई 2011

दर्द-इ-जिगर

वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में ....
कि यार 'साखी' झलका जाम पैमाने में|
हम आज भी तन्हा काटते है कई शाम  यूँ मयखाने में...
बस किया इंतजार तेरा ,कुछ बात तो है मुझे जैसे दीवाने में|
वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में..

तुम कहो तो मयकदा छोड़ देंगे 'बागी' मेरे..
बस कोई दे दे अपना हाथ हमें घर तक लाने में|
तलाश रही हमें कि तुझ से बड़ा कोई गम दे जाये..
पर उम्र गुजर गयी यूँ तुझे 'पीने' में और भुलाने में|
वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में...
                                  ---ललित शर्मा 'बागी ' 



रविवार, 17 जुलाई 2011

ऐ खुदा..

आज फिर से मैं रोज-ऐ-रमजान कर लूँगा|
तू चाहे तो खुदा मैं अजान कर लूँगा |
ऐ खुदा तेरे बन्दे यहाँ दिलों को बांटते है फिर भी..
तेरी रहमतो से जिन्दगी गुलज़ार कर लूँगा|

मुझे यहाँ मसीहा दिखाई न  पड़ता है कोई,
जब  'धमाके ' होते है मेरे मुल्क में ...
हँसता है कोई ,रोता है कोई|
वो लाशों पर भी सियासत कर लेते है बड़े इन्तमिनान से,
ये लोग क्या जाने जब दर्द होता है कोई|

मैं तो मंदिरों में भी आराम कर लूँगा ,
मैं तो मस्जिदों में भी अजान कर लूँगा|
मैं तो एक आम आदमी हूँ मेरे मालिक,
मैं तो तेरी कायनात में आराम से काम कर लूँगा|
                                               -ललित शर्मा 


सोमवार, 27 जून 2011

आज मैं आप लोगो को अपने कुछ अनुभव बताता हु|लोग कहते थे वो zues(जूस) का बेटा था,उसने सारे संसार को जीता और वो विश्वविजेता कहलाया और लोगों ने उसे महान सिकंदर कहा|फिर उसकी विश्वविजेता सेना विदद्रोह कर बैठी और उसे भारत से जाना पड़ा परन्तु वह भारत फ़तह करने मे नाकाम रहा|फिर वो बेबीलोन गया जहाँ उसकी और उसके परम मित्र हिपॅस्टीन की मत्यु हो गयी|
ये कहानी बड़ी प्रेरणादायी और कई मामलो मे रोचक है|ये पूरी कहानी सिकंदर महान की नियति बताती है यानी एक महान वीर लड़ाका जिसने कई युधया जीते थे वो भी नियति के हाथो मजबूर और लाचार था| ना केवल उसे अपना प्रिय मित्र खोना पड़ा अपितु उसे पित्रहन्ता समझा गया|उसे कम उम्र मे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और ना ही उसका कोई रक्त वारिस उसके साम्राज्या पे आरूढ़ हुया|
शायद यही नियति होती है जो हर इंसान के साथ चलती है और हर इंसान को अपनी नियति भुगतनी ही पड़ती है|नियति को शायद कर्म करने से भी बदला नही जा सकता|यहा तक कृष्ण को भी अपनी नियति भोगनी पड़ी ,उसके कुल का नाश होगे और वो भी साधारण व्याधर के द्वारा मारा गया|
अब बारी है भाग्य की,भाग्य कुछ नही बस हमे मिलने वाले अवसर है जिन्हे अपने जीवन मे उतरना हमारा कर्म|भाग्य बदला जा सकता है बशर्ते अच्छा कर्म किया जाए|अगर हमारा आचार और विचार अच्छा व शुधया रहे तो भाग्य अच्छा रहता है|कुछ बुनियादी बाते जो निष्तेज़ भाग्य को भी सूर्य के समान तेज़ोमय कर देती है-:
१.) Healthy Living(जीवनशैली मे ना केवल कुछ सकारात्मक उर्जा का समावेश होना चाहिए अपितु व्यायाम और संतुलित आहार होना चाहिए )
२.) सही मित्रो का चुनाव|
३.) काम करने की ढृढ इच्छाशक्ति|
४.) व्यवहार मे नम्रता|
५.) कर्म की शुधयता
अतः नियति आप बदल नई सकते पर भाग्य निर्धारण कर सकते है|
                                                             धन्यवाद|