शनिवार, 30 जुलाई 2011

दर्द-इ-जिगर

वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में ....
कि यार 'साखी' झलका जाम पैमाने में|
हम आज भी तन्हा काटते है कई शाम  यूँ मयखाने में...
बस किया इंतजार तेरा ,कुछ बात तो है मुझे जैसे दीवाने में|
वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में..

तुम कहो तो मयकदा छोड़ देंगे 'बागी' मेरे..
बस कोई दे दे अपना हाथ हमें घर तक लाने में|
तलाश रही हमें कि तुझ से बड़ा कोई गम दे जाये..
पर उम्र गुजर गयी यूँ तुझे 'पीने' में और भुलाने में|
वो आये इतनी शिद्दत से मयखाने में...
                                  ---ललित शर्मा 'बागी '